कृषि सुधारों पर व्यापक बहस व सहमति आवश्यक
कृषि शिक्षा के प्रचार व प्रसार व कृषि प्रबंधन के लिए बड़ी संख्या में महाविद्यालय व विश्वविद्यालयों की स्थापना करना भी आवश्यक है जिससे खेती करने की नवीन तकनीक विकसित की जा सके। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल
भारत में राज्य व केन्द्र सरकारों के द्वारा कृषि की स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न कदम समय समय पर उठये गये। अब यह महसूस होने लगा है कि कृषि में सुधारने के लिए एक व्यापक बहस व सहमति अत्यावश्यक है वरना तो सरकारों के द्वारा घोषित होने वाले सुधारों का यही हाल होगा जो तीन कृषि कानूनों का हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा सर्वसाधारण जनों के लिए अत्यन्त अच्छा व किसानों के हित में समझा जाने के बाबजूद भी अांदेलन के दबाब में राष्ट्रपति के द्वारा हस्ताक्षरित व लोकतांत्रिक ढ़ंग से बनाये गये तीनों कृषि कानूनों को क्षमा मांगते हुए 19 नवम्बर 2021 को वापस लेना पड़ा। यह सभी देशवासी समझते थे कि तीनों कृषि कानून बहुत सोच समझ कर बनाये गये थे और उन कानूनों से किसानों की विभिन्न समस्याओं का समाधान होता तथा किसानों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति में व्यापक सुधार हो सकता था।
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है तथा यह क्षेत्र व्यापक रुप से देश के नौजवानों को रोजगार भी उपलब्ध कराता है। देश की विभिन्न योजनाओं में किसानों व कृषि का हित देखा जाता है। परन्तु लोकतांत्रिक व्यवस्था की राजनीति किसानों की दशा सुधारने के रास्ते में आड़े आ जाती है। उससे किसानों की स्थिति सुधर नहीं पाती है। भारत में लगभग 48 प्रतिशत जनसंख्या कृषि से जुड़ी गतिविधियों से अपनी आजीविका प्राप्त करती है। भारत में जनसंख्या में तेज गति से बृद्धि होती जा रही है जिससे भारत में प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता कम होती जा रही है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता मात्र 0.12 हेक्टेयर है जबकि वैश्विक स्तर पर यह 0.29 हेक्टेयर है अर्थात भारत में यह आधे से भी कम है।
कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार औसत जोत का आकार 1.08 हेक्टेयर था जो 1970-71 में औसत जोत 2.28 हेक्टेयर थी। जोत का आकार कम होने से कृषि में फसलों की लागत बढ़ती जाती है। लागत का बढ़ना कृषि की सबसे बड़ी समस्या है।
वर्ष 1951 में 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि से आजीविका ग्रहण करती थी। वर्ष 2011 में यह संख्या मात्र 48 प्रतिशत रह गई। जबकि जनसंख्या बढ़ने से कृषि पर आजीविका के लिए निर्भर लोगों की संख्या बहुत बढ़ी है। जोत का आकार कम होता जा रहा है। देश में भूमि का असमान वितरण भी गम्भीर समस्या हैं। लगभग पांच प्रतिशत किसानों के पास कुल भूमि का 30 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि है तथा मात्र एक प्रतिशत किसान ही बड़े किसानों ( दस हेक्टेयर से अधिक) की परिभाषा में आते है। 4 प्रतिशत मध्यम (4.01 से 10 हेक्टेयर) श्रेणी, 9 प्रतिशत लघु मध्यम (2.01 से 4.00 हेक्टेयर), 18 प्रतिशत छोटे किसान (1.01 से 2.00 हेक्टेयर) एवम् 68 प्रतिशत सीमान्त किसान (1 हेक्टेयर से कम) की श्रेणी में है।
देश के 63.4 प्रतिशत परिवार खेती, 22 प्रतिशत परिवार ख्ेती में मजदूरी व नौकरी करके, 4.7 प्रतिशत परिवार गैर कृषि उद्यम से, 3.7 प्रतिशत परिवार पशुपालन से, 1.1 प्रतिशत परिवार अन्य कृषि गतिविधियां तथा 5.1 प्रतिशत अन्य कार्यों से आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है।
कुल जीड़ीपी में भी कृषि का येगदान घटता जा रहा है व सेवा क्षेत्र का योगदान बढ़ता जा रहा है। 1950-51 में कृषि का योगदान 51.9 प्रतिशत, 1980-81 में 35.7 प्रतिशत तथा 2014 - 15 में 17 प्रतिशत था जबकि सेवा क्षेत्र का योगदान 1950-51 में 34.6 प्रतिशत, 1980-81 में 45.3 प्रतिशत, तथा 2014-15 में 53 प्रतिशत था।
कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार देश में सकल कृषि योग्य भूमि 19.2 करोड़ हेक्टेयर है जिसमें मात्र 9.5 करोड़ हेक्टेयर सिंचित भूमि है। सिंचाई में अत्यधिक दोहन से भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है तथा सिंचाई के सही तरीके नहीं अपनाने से जल की बर्बादी अधिक हो रही है जिसमें सरकारें सब्सिड़ी भी देती है। इस बात पर विचार किया जाना आवश्यक है कि भारतीय किसान मेहनत में कमी नहीं छोड़ता परन्तु फिर भी वह गरीब ही रहता है। किसान कृषि में ऋणों में दबता जाता है। केन्द्र सरकार ने कृषि में सुधार के लिए ही तीन कृषि कानून बनाये थे परन्तु कुछ लोगों की हठधर्मिता से 12 करोड़ किसान परिवारों का सपना टूट गया। कानून हमेशा गलत प्रवृतियों पर रोक के लिए बनाये जाते है। हमारे प्रतिदिन के जीवन में अच्छे व सुधारवादी कदमों के लिए किसी कानून की कितनी आवश्यकता होती है।
भारतीय कृषि की सबसे बडी़ कमी असमान जोत है जिससे एक मंत्र समान रुप से सभी किसानों पर लागू नहीं हो सकता। सरकार को संसाधन, तकनीक, फसल विविधता, कृषि से जुड़े अत्यधिक लोग आदि कमियों का चरणबद्ध तरीके से दूर करना होगा जिसे किसान ख्ुशहाल हो सके तथा कृषि को एक पेशे के रुप में अपनाने पर सम्मानित महसूस कर सके। भारत अब अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन चुका है। बस रणनीति बदलने की आवश्यकता है।
देश के मेहनतकश किसानों को आध्ुनिक कृषि तकनीक से लैस किया जाना चाहिए तथा सरकार के द्वारा दिये जाने वाले अनुदान का लाभ दिया जाय। बिचौलियों को खुली छूट किसानों के अधिकार पर ड़ाका ड़ालने का काम करती है। शासन व प्रशासन को किसानों के प्रति संवदेनशील होना चाहिए तथा किसान को उसकी फसल का लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए। कृषि को एक सम्मानजनक पेशा बनाया जाना चाहिए।
किसान कृषि के कचरे से बाई प्रोड़क्ट बना कर व फूड़ प्रोसेसिंग व पशुपालन से अच्छी कमाई कर सकता है। कृषि जमीन का अधिकतम उपयोग करते हुए इंटर क्रापिंग की जानी चाहिए। कृषि उपज की अंतरराज्यीय बिक्री पर रोक नहीं होनी चाहिए। मंड़ी कानून में सुधार करना चाहिए। अब पूरा विश्व एक बाजार बनता जा रहा है। भारत के किसानों को यदि विश्व के किसानों से प्रतियोगिता करनी है तो उसे भी अत्याधुनिक कृषि तकनीक तथा आधुनिक व उन्न्त बीज उपलब्ध होने चाहिए।
खेती की जमीनों का सरकार के द्वारा कम्प्यूटरीकरण करके उसकी हस्तांतरण को आसान होना चाहिए जिससे कृषि अपनाना व छोड़ना आसान हो सके व जमीन के मलिकाना हक को लेकर मुकदमेबाजी कम हो सके जिससे किसान मुकदमेबाजी में फंस कर गरीब होता जाता है। जमीन को लेकर विभिन्न पाबंदियां कम की जानी चाहिए। भंडारण व कोल्ड़ स्टोरेज की व्यवस्था, गांवों को सड़क से जोडना, बिजली व पीने व सिचांई के पानी की उचित व्यवस्था तथा स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना से गांवों की स्थिति बदल सकती है।
भारत का यदि अन्न उत्पादक खुश व समृद्धिशाली होगा तो देश की भी तरक्की हो सकेगी। कृषि सुधारों पर व्यापक बहस व सहमति बनाना आवश्यक है तथा किसान के वर्तमान हालात पर व्यापक बहस करके उन कारणों का पता लगाया जाना जरुरी है जिससे कि किसान वास्तव में गरीबी की हालात में बना रहता है। शहरों की ओर युवा शक्ति का पलायन को रोका जाना चाहिए। किसानों को उद्योंगो की स्थापना के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। खेतों की मेढ़ों पर वृक्षारोपणा के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए तथा उस पर वन कानूनों से नियंत्रण नहीं किया जाना चाहिए। कृषि शिक्षा के प्रचार व प्रसार व कृषि प्रबंधन के लिए बड़ी संख्या में महाविद्यालय व विश्वविद्यालयों की स्थापना करना भी आवश्यक है जिससे खेती करने की नवीन तकनीक विकसित की जा सके। किसानों की व कृषि की स्थिति पर प्राथमिकता के आधार पर दीर्घकालीन योजनाऐं बनानी चाहिए।
डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।